देश प्रेमियों, देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों एवं क्रांतिकारियों की यादगार पुनः स्थापित करने के लिए बड़े प्रयत्न से एक शोध ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है, इस ग्रन्थ में लगभग एक हजार क्रन्तिकारी और शहीदों का परिचय प्रस्तुत किया गया है, इस संकलन को अंतिम रूप देने के लिए विभिन्न स्रोतों से सहयोग लिया और इसके लिए अंदमान निकोबार स्थित सेलुलर जेल भी मैं गया, उक्त ग्रन्थ में से प्रतिदिन कुछ क्रन्तिकारी और शहीदों का संक्षिप्त परिचय आप तक पहुचाने हेतु facebook (http://www.facebook.com/harvilas.gupta.7) तथा मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित किया जायेगा , यदि आप को मेरा यह प्रयास अच्छा लगे तो उक्त क्रांतिकारियों का जीवन परिचय अपने मित्रों को फॉरवर्ड करें . आप सब की प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी ....
Harvilas Gupta
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आज की परिचय श्रंखला में प्रस्तुत हैं --
1) गुरु राम सिंह
1) गुरु राम सिंह
२) वीर कुअर सिंह
३) रंगों जी बापू गुप्ते
४)महादेव गोबिंद रानाडे
५) महाराजा नन्द कुमार
६) चित्तू पाण्डेय
बाबा रामसिंह कूका
बाबा रामसिंह कूका
बाबा रामसिंह कूका का जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ (नामधारी) कहलाया।
बाबा रामसिंह कूका भारत की आजादी के सर्वप्रथम प्रणेता (कूका विद्रोह), असहयोग आंदोलन के मुखिया, सिखों के नामधारी पंथ के संस्थापक, तथा महान समाज-सुधारक थे। संत गुरु राम सिंह ने 12 अप्रैल 1857 को श्री भैणी साहिब जिलालुधियाना (पंजाब) से जब अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध आवाज उठाई थी, तब उस समय भारतवासी गुलामी के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों के शिकार थे. उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। १८७२ में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युध्द का पासा पलट गया।
इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़करबर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
वीर कुअर सिंह
कुंवर सिंह का जन्म १७७७ में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से थे। उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे. १८५७ में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया। बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुरऔर रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।
27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा जमा लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।'
महा देव गोबिंद रानाडे
महादेव गोबिंद राना डे का जन्म १८ जनवरी १८४२ को नासिक महाराष्ट्र में हुआ था . वे एक प्रतिष्ठित भारतीय विद्वान, सामाजिक सुधारक और लेखक थे . उन्होंने कांग्रेस कि स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने पूना सार्वजनिक सभा और प्रार्थना समाज की स्थापना में मदद की. मृत्यु १६ जनवरी १९०१ को हुई.
रंगों बापू गुप्ते
रंगों बापू जी गुप्ते का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था. १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण योजनाकार थे. फ़्रांस कि क्रांति में जो महत्वा रूसो और वाल्टेयर का है , वही स्थान १८५७ की भारतीय क्रांति में अजीमुल्ला खान और रंगों बापू जी गुप्ते है. १८५३ में लन्दन से लौटने के बाद रंगों जी बापू जी गुप्ते ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सतारा , बेलगाँव अदि के संपूर्ण क्षेत्रों में बड़े तीव्र और गोपनीय ढंग से क्रांति का प्रसार किया. १८५८ में उनके एक निकट मित्र ने विस्वासघात करके अंग्रेजो से गिरफ्तार करने का प्रयास किया पर इसके बाद इनका कुछ पता नहीं चला.
चित्तू पाण्डेय
१० मई १८६५ में उत्तर प्रदेश के बलिया में पैदा हुए. इनको शेरे बलिया के नाम से पुकारा जाता था. इन्होने बलिया में भारत छोडो आन्दोलन का नेत्रत्वा किया. १९४२ में बलिया में सामानांतर सरकार बनाई तथा वहां के जिला कलेक्टर से सत्ता हाथ में लेकर सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया.
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